चुरा लेता तुझे,
भाग के अपने फिर घर आ जाता।
छुपा देता।
कोई वापस मांगने आता,
तो कहता "झूँठा है।"
लड़ जाता।
या तो फिर माँ से मांग लेता तुझे,
जिद्द पर अड़ जाता।
और वो हर बार की तरज, पिघल कर-
मुझे तू ला देती।
हाँ पूछती- "लड़का है। क्या करेगा गुडिया का?"
मैं मासूमियत से मुस्कुरा कर कहता- "शादी।"
क़ाश मैं उस बच्चे सा होता,
तू- उस गुडिया सी।।
भाग के अपने फिर घर आ जाता।
छुपा देता।
कोई वापस मांगने आता,
तो कहता "झूँठा है।"
लड़ जाता।
या तो फिर माँ से मांग लेता तुझे,
जिद्द पर अड़ जाता।
और वो हर बार की तरज, पिघल कर-
मुझे तू ला देती।
हाँ पूछती- "लड़का है। क्या करेगा गुडिया का?"
मैं मासूमियत से मुस्कुरा कर कहता- "शादी।"
क़ाश मैं उस बच्चे सा होता,
तू- उस गुडिया सी।।
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