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The Winter Rain.

“The faded colors of life, the dim beams of light, strange is to see, the drenched world with liquid eyes” It was a winter rain… She...

Sunday, November 18, 2012

चुरा लेता तुझे,
भाग के अपने फिर घर आ जाता।
छुपा देता।
कोई वापस मांगने आता,
तो कहता "झूँठा है।"
लड़ जाता।

या तो फिर माँ से मांग लेता तुझे,
जिद्द पर अड़ जाता।
और वो हर बार की तरज, पिघल कर-
मुझे तू ला देती।
हाँ पूछती- "लड़का है। क्या करेगा गुडिया का?"
मैं मासूमियत से मुस्कुरा कर कहता- "शादी।"

क़ाश मैं उस बच्चे सा होता,
तू- उस गुडिया सी।।   

तेरा ख्याल... जो डांटता है मुझे।

आजकल... तेरा ख्याल भी डांटता है मुझे।

शाम Bruno को छत पर घुमा रहा था- तो मिला।
छूटते ही बोला,
दिन में दस दफ़े तो बुला लेते हो,
कोई और काम नहीं है?
तब तो टशन से बोला था-
"नहीं मिलना तुझसे..."
अब! तुम्हे एक पल भी आराम नहीं है।
चाहते क्या हो?

मैं क्या कहता उससे?
क्या समझाता?
तू होती तो एक मज़े की बात बतानी थी- Gossip!
उसको तो क्या ही बताता।
मैं तो बस खुश था,
कि एक बार बुलाने पर, वो आया था।

तेरा गुस्सा... शायद देखने को
अब कभी ना मिले।
ये ख्याल अक्सर मिलता रहेगा,
तेरा ख्याल... जो डांटता है मुझे।। 

तैखाना।

एक तैखाना है मुझमें,
जहाँ मैंने, तेरे-मेरे संग के
कुछ सपने कभी रखे थे।
सपने जो अब कुछ सीले से हैं।
इतने सीले, की छूने  से टूट जाते है...
गीले कागज़ से।

जाने कैसे सील गये?
पलकों पर शायद ज्यादा ही रोक लिए थे आँसू,
कि रिस्ते-रिस्ते उस तैखाने तक पहुँच गये।

पर वो जो सपना था ना!
तेरे नए ठिकाने पर,
रातों में रुकने आने का।
वो कुछ कम सीला सा है।
नया भी सबसे वोही तो था।

उसे मैं अक्सर आँखों में ले आता हूँ...
कुछ मुस्कराहट की गर्माहट दे देता हूँ।
नया सा हो जाता है...
फिर संभाल के रख देता हूँ वापस,
वो जो तैखाना है मुझमें ना- उसमें।।


"तू सोए तो तुझसे किसी ख़्वाब में आकर मिलूँ;
हक़ीकत तो नाराज़ है  हमसे शायद,
मिलने का मौका ही नहीं देती।।"

      
  

Trying Punjabi.. Praising Heer!

सादे चिट्टे सलवार कमीज़ विच वी हीरे,
तू जन्नत दी ता लगदी वे,
तैनू वस पान दी चाह लैके,
मर जाने ही सी राँझे।

सोने दी ओ पतली चूडी,
हथ तेरा जो फड़के बैठी,
ते तैनू वस छू लैन दी चाह लैके
जल जाने ही सी राँझे।

नी तेरे हुस्न दे उत्ते यारा,
अधा पिण्ड ते राँझा होया,
मैं कोई विलायत दा थोड़े ही हां;
तेरी हया दे सदके यारा;
हून आपे हो गये रांझे।।            

फर्क।

तेरा होना इस दुनिया में,
मेरे सामने तेरा ज़िक्र होना-
फर्क इतना तो नहीं पड़ता मुझे,
पर हल्का सा तो पड़ता है।

एक बात जिसको कहना अब जयाज़ नहीं,
आँखों के किनारों से अक्सर  ही गिर जाती है।
हम अब मुखातिब होंगे नहीं,
ये बात सताती है, पर कम सताती है।
तो तेरी आवाज़ तेरा लह्ज़ा,
लोग अब भी सुन पाते हैं;
इस बात से,
फर्क इतना तो नहीं पड़ता मुझे,
पर हल्का सा तो पड़ता है।

एक टुटा क्लिप तेरे बालों का,
एक तिजोरी सी में रखा है।
और एक टुटा नाता तेरा-मेरा,
सिरहाने पर।
ख्वाबों में तेरा मिलना, पलटना बुलाने पर- काफ़ी तो है।
मैं समझाता हूँ खुद को-
पर कुछ लोग तुझ से हकीकत में मिल पाते हैं;
इस बात से
फर्क इतना तो नहीं पड़ता मुझे,
पर हल्का सा तो पड़ता है।